'तुम साथ थीं
तो तुम्हारे प्यार की तपन भर देती थी मुझे एक नयी ऊर्जा से,
जो खर्चता था मैं कई कई कामों में अपने आपको तल्लीन करके,
और तुम कहतीं थी 'तुम व्यस्त हो', और मैं निरुत्तर था !'
'तुम साथ थीं
तो तुम्हारी खुशबू इस तरह समायी थी मेरे रग रग में,
की हार तिनका मुझे गंध बिखेरता प्रतीत होता था,
और तुम कहतीं थी 'तुम मुग्ध हो', और मैं निरुत्तर था!'
'तुम साथ थीं
तो तुम्हारे प्रेम ने दी थी इतनी आसक्तता मुझको,
की हर प्राणी से स्वतः ही घुल मिल जाया करता था मैं,
और तुम कहतीं थी 'तुम विमुख हो', और मैं निरुत्तर था!'
'तुम साथ थीं
तो तुम्हारे भावों को खोजता था प्रकृति के हर रंग में,
और कोशिश करता था उन रंगों से रंगने की जीवन को,
और तुम कहतीं थी 'तुम आसक्त हो', और मैं निरुत्तर था!'
'और अब कई काम अधूरे पढ़े हें पिछले कई दिनों से
कितने ही फूल बगिया में खिलाए हैं बसंत ने ,
कौन कौन पूछता फिर रहा है मेरा पता,
कैसे कैसे रंगों को ओढा है आज धरती ने,
पर आज मैं व्यस्त नहीं हूँ !
मुग्ध नहीं हूँ !
विमुख नहीं हूँ!
आसक्त नहीं हूँ !
क्योकि तुम साथ नहीं हो !
पर देखो आज मैं निरुत्तर भी नहीं हूँ !'
9 comments:
बढ़िया है. मात्राओं पर जरा ध्यान दिजिये!
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हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
समीर जी की बातों पर ध्यान दें
लगा कि हिन्दी ब्लॉगरी में एक नया सितारा चमका है।
@ तुम कहतीं थी 'तुम मुग्ध हो', और मैं निरुत्तर - वाह
@ पिछले कई दिनों से कितने ही फूल बगिया में खिलाए हें बसंत ने ,कौन कौन पूछता फिर रहा हें मेरा पता, कैसे कैसे रंगों को ओढा हें आज धरती ने, पर आज मैं व्यस्त नहीं हूँ ! मुग्ध नहीं हूँ ! विमुख नहीं हूँ! आसक्त नहीं हूँ !क्योकि तुम साँथ नहीं हो !पर देखो आज में निरुत्तर भी नहीं हूँ !'
क़ुरबान गए बन्धु इस पर तो !
साँथ - साथ
उर्जा - ऊर्जा
कामो - कामों
में - मैं
की - कि
हार - हर
आसक्ता- आसक्ति
रंगने की
- रंगने को
हें - हैं
अपना परिचय हिन्दी में कर दीजिए।
Bahut sundar rachana....word verification hata dijiyega comment karane walo ko suvidha rahegi :)
Shubhkaamnaae.
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
मुग्ध नहीं हूँ !
विमुख नहीं हूँ!
आसक्त नहीं हूँ !
क्योकि तुम साँथ नहीं हो !
पर देखो आज में निरुत्तर भी नहीं हूँ !'
Aah!
Ramnavmiki anek shubhechhayen!
Sundar aur --samvedanatmak rachana----.
गिरिजेश जी ने तो सब कह ही दिया . उसे मेरी भी टिप्पणी मान लें.
आपका स्वागत है.
bahuta chi rachna ..bhavnaye hi to bahut kuch kahti hai ye dil me jo rahti hai
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
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