Tuesday, November 3, 2009

"मानवतावाद "


"एक प्रकृति, एक पलना, एक स्नेह, एक ही पोषण

फिर भी आज मानवों के भिन्न क्यो हे कर्म रोपण?

आस्तित्विक दीर्घता को जीवन का उद्देश्य जान

लघुता की और निरंतर गतिशील परम कर्तव्य से विमुख ज्ञान

तेरा अहम् ,मेरा अहम् प्रकृति के साथ हे खीच तान

रहित मानवतावाद के कैसे प्रगतिशील मानव महान ?

करुना मयी दशा बनी है चारो और झूठा उत्थान

नेताओ ने जात बदलकर ख़ुद को मन लिया भगवान

चीख रही मानवता प्रतिपल कोई करे मेरा निदान

रहित मानवतावाद के कैसे प्रगतिशील मानव महान ?"

"चूडियाँ"

"मेरी दी हुई चूडियाँ जो खनक कर मुझे आवाज़ देतीं हैं
कहीं न कहीं चुपचाप खामोशी से सहेजी गयीं हैं
और जब भी छु लेती हो तुम उन्हें कुछ और चुप करने के लिए
एक बार फ़िर वो खनक कर मेरा नाम बोल उठती हैं
उन्हें चुप करने के लिए तुम्हे उन्हें बहुत जोर से खनकाना होगा
इतनी जोर से की वो टूट जाएँ
पर खनकती चूडियाँ भी नाम तो मेरा ही लेंगी
मुमकिन हे की वो इतना तेज़ खनके
की उनकी प्रतिध्वनी तुम भूल ही न पाओ
अपने नियमो की सख्त जमीं पर, जोर से उन्हें पटक कर खनका देना
और उस खनक को मेरे ह्रदय की आखिरी आवाज़ समझ
मुझे मृत मान लेना
वरना तब तक तो मैं जिन्दा हूँ!"

Tuesday, October 27, 2009

"सौदा ऐ नफा "



अंजाम ऐ जिस्म मौत का पता हे जिस पर, हाँ मालूम हे ये जिन्दगी का लिफाफा हे

पहुंचना हे एक खूबसूरत अंजाम तक, फ़िरभी हम नजाने क्यो इससे खफा हे !

पल दो पल का ये हँसी का मजमा हे, बाकि तो बस गम ऐ इजाफा हे !

ये डाक घर तो एक पराया काफिला हे, और ये चिट्ठिया भी सारी बेबफा हें!

फ़िर भी नजाने क्यो दिल यहाँ लग जाता हे, नजाने कैसी यहाँ की हवा हे !

सब कुछ पाकर लुटा देना चाहता हूँ, नजाने ये कैसा सौदा ऐ नफा हे ? "

Monday, October 12, 2009

"डर"

"भटक गए हें हम यारो ऐसी राह पर,जहाँ से निकलने में भटके जाने का डर हे!"

" ऊब गये हें जिन्दगी से और हालात ये हे, की मौत को गले लगाने पर जिन्दा बच जाने का डर हे!"

" जीत में हार का डर हे हार में जीत का डर हे, इस क्रत्घन दुनिया में अपने ही मीत का डर हे!"

" पाने में खोने का डर हे खोने में पाने का डर हे ,खाना न मिलने पर यहाँ भूके मर जाने का डर हे!"

"आज इसी कारण से मेरी आत्मा एकाकी हे, की रिश्ता बन जाने पर उसके तोड़ दिए जाने का डर हे!"