Wednesday, March 24, 2010

"मैं बुद्धिजीवी हूँ"

"मैं बुद्धिजीवी हूँ !

अपनी योग्यता, शिक्षा और कुशलता से अपना पेट भरता हूँ

प्रतिदिन अपनी निश्चित दिनचर्या में बंधा, दूसरों को कोल्हू का बैल बनने से सतर्क करता हूँ

मैं समाज में सम्मानित हूँ, राजनीतिमें सम्मिलित हूँ

मुझे हर क्षेत्र का भला ज्ञान है,

बैठकों में तर्क वितर्क करना मेरी पहचान है

मैंने जीवन के मार्मिक पहलुओं को छुआ है ,

इतना की उनकी यादें भी अब धुआं हैं

मुझे हर समस्या विदित है ,

और उसका समाधान भी मुझमे सन्निहित है

पर क्या करू मेरा कार्य क्षेत्र संकुचित है,

और इसके बाहर जाना वर्जित है

क्योंकि मुझे अपनी योग्यता ,शिक्षा और कुशलता के पैसे मिलते हैं,

इसलिए क्रन्तिकारी विचार मन में भी नहीं पलते हैं

और मैं पैसे पर पलने वाला परजीवी हूँ

क्या करूँ मैं बुद्धिजीवी हूँ !"

3 comments:

स्वप्न मञ्जूषा said...

क्या बात कही है आपने..

और मैं पैसे पर पलने वाला परजीवी हूँ

क्या करूँ मैं बुद्धिजीवी हूँ !"

यही तो विडंबना है ...

बुद्धिजीवी होते हुए परजीवी बनाना...

बहुत खूब..

RAJ SINH said...

कभी कुछ ऐसा मैंने भी लिखा था .
उसका एक छोटा सा अंश ..........

हाँ मैं बुद्धजीवी हूँ
क्यूं की लगा दी है पूरी बुद्धि
जीव को बचाने में.

सुन्दर !

CHetan Sisodiya said...

really nice1...