Tuesday, November 3, 2009

"मानवतावाद "


"एक प्रकृति, एक पलना, एक स्नेह, एक ही पोषण

फिर भी आज मानवों के भिन्न क्यो हे कर्म रोपण?

आस्तित्विक दीर्घता को जीवन का उद्देश्य जान

लघुता की और निरंतर गतिशील परम कर्तव्य से विमुख ज्ञान

तेरा अहम् ,मेरा अहम् प्रकृति के साथ हे खीच तान

रहित मानवतावाद के कैसे प्रगतिशील मानव महान ?

करुना मयी दशा बनी है चारो और झूठा उत्थान

नेताओ ने जात बदलकर ख़ुद को मन लिया भगवान

चीख रही मानवता प्रतिपल कोई करे मेरा निदान

रहित मानवतावाद के कैसे प्रगतिशील मानव महान ?"

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