Tuesday, November 3, 2009

"मानवतावाद "


"एक प्रकृति, एक पलना, एक स्नेह, एक ही पोषण

फिर भी आज मानवों के भिन्न क्यो हे कर्म रोपण?

आस्तित्विक दीर्घता को जीवन का उद्देश्य जान

लघुता की और निरंतर गतिशील परम कर्तव्य से विमुख ज्ञान

तेरा अहम् ,मेरा अहम् प्रकृति के साथ हे खीच तान

रहित मानवतावाद के कैसे प्रगतिशील मानव महान ?

करुना मयी दशा बनी है चारो और झूठा उत्थान

नेताओ ने जात बदलकर ख़ुद को मन लिया भगवान

चीख रही मानवता प्रतिपल कोई करे मेरा निदान

रहित मानवतावाद के कैसे प्रगतिशील मानव महान ?"

"चूडियाँ"

"मेरी दी हुई चूडियाँ जो खनक कर मुझे आवाज़ देतीं हैं
कहीं न कहीं चुपचाप खामोशी से सहेजी गयीं हैं
और जब भी छु लेती हो तुम उन्हें कुछ और चुप करने के लिए
एक बार फ़िर वो खनक कर मेरा नाम बोल उठती हैं
उन्हें चुप करने के लिए तुम्हे उन्हें बहुत जोर से खनकाना होगा
इतनी जोर से की वो टूट जाएँ
पर खनकती चूडियाँ भी नाम तो मेरा ही लेंगी
मुमकिन हे की वो इतना तेज़ खनके
की उनकी प्रतिध्वनी तुम भूल ही न पाओ
अपने नियमो की सख्त जमीं पर, जोर से उन्हें पटक कर खनका देना
और उस खनक को मेरे ह्रदय की आखिरी आवाज़ समझ
मुझे मृत मान लेना
वरना तब तक तो मैं जिन्दा हूँ!"