Tuesday, November 3, 2009

"चूडियाँ"

"मेरी दी हुई चूडियाँ जो खनक कर मुझे आवाज़ देतीं हैं
कहीं न कहीं चुपचाप खामोशी से सहेजी गयीं हैं
और जब भी छु लेती हो तुम उन्हें कुछ और चुप करने के लिए
एक बार फ़िर वो खनक कर मेरा नाम बोल उठती हैं
उन्हें चुप करने के लिए तुम्हे उन्हें बहुत जोर से खनकाना होगा
इतनी जोर से की वो टूट जाएँ
पर खनकती चूडियाँ भी नाम तो मेरा ही लेंगी
मुमकिन हे की वो इतना तेज़ खनके
की उनकी प्रतिध्वनी तुम भूल ही न पाओ
अपने नियमो की सख्त जमीं पर, जोर से उन्हें पटक कर खनका देना
और उस खनक को मेरे ह्रदय की आखिरी आवाज़ समझ
मुझे मृत मान लेना
वरना तब तक तो मैं जिन्दा हूँ!"

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