Tuesday, October 27, 2009

"सौदा ऐ नफा "



अंजाम ऐ जिस्म मौत का पता हे जिस पर, हाँ मालूम हे ये जिन्दगी का लिफाफा हे

पहुंचना हे एक खूबसूरत अंजाम तक, फ़िरभी हम नजाने क्यो इससे खफा हे !

पल दो पल का ये हँसी का मजमा हे, बाकि तो बस गम ऐ इजाफा हे !

ये डाक घर तो एक पराया काफिला हे, और ये चिट्ठिया भी सारी बेबफा हें!

फ़िर भी नजाने क्यो दिल यहाँ लग जाता हे, नजाने कैसी यहाँ की हवा हे !

सब कुछ पाकर लुटा देना चाहता हूँ, नजाने ये कैसा सौदा ऐ नफा हे ? "

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