Tuesday, September 14, 2010

बिना नींद कि गोलियां खाए !

सड़क के किनारे करतब दिखाता एक कलाकार
चार सूखे बांसों पर अपनी जिन्दगी का तानाबाना बुनता है
इन चार बांसों को वो गाढ़ देता है अपने संघर्षों की सख्त जमीन पर
और मजबूरी की एक रस्सी खींच देता है दोनों सिरों के बीच
तब शुरू करता है कभी ख़त्म न होने वाली एक दूरी
और पहुँच जाता है रस्सी के दूसरे छोर पर इस भाव के साथ
कि आज उसके बच्चे भूखे नहीं सोएंगे
रात को उन्ही बांसों पर पन्नी डालकर रोज तैयार करता है अपना घर
और पूरी करता है अपनी नींद रातभर उस पन्नी का एक छोर पकड़कर
बिना नींद कि गोलियां खाए !

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