"तुम चाँदनी सी शांत हो,
तुम जल सी हो निर्मल
तुम कुमोदिनी का फूल हो,
या हो शवेत कमल
किस वेश में तुम हो, किस रंग में तुम हो
किस भाव में तुम हो, किस उमंग में तुम हो
नहीं जनता हूँ किस संसार में तुम हो?
जहाँ भी हो मेरे इंतजार में तुम हो,
जहाँ भी हो सिर्फ मेरे प्यार में तुम हो|
तुम मुक्त हो पवन सी ,
हो विचारों सी सहज
काव्य सी सरस हो,
या मेरी कल्पना महज,
नहीं जनता हूँ किस किरदार में तुम हो ?
जहाँ भी हो मेरे इंतजार में तुम हो,
जहाँ भी हो सिर्फ मेरे प्यार में तुम हो|"
1 comment:
बहुत सुन्दर रचना ....ह्रदय से लिखी गयी ...पसंद आई ...बस एक शब्द गलत छप गया ...जो चाँद के दाग की तरह प्रतीत हो रहा है ...' भेस ' इस ठीक करले .....प्रेम की एक सुन्दर अभिव्यक्ति है आपकी कविता ...कुछ ऐसा ही सर्जन हमने भी किया है ..जो आपके सुझाव की प्रतीक्षा में है .....आपके सुझाव ही हमारे सच्चे मार्गदर्शक है
http://athaah.blogspot.com/2010/04/blog-post_29.html
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